शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आ जाओ न

गर्म हवाओं को बसंत की दस्तक

तिलक कर माथे पुरवाई के

आ जाओ झमाझम शरमाई सी

देखो रस्ता तकते हैं सब

चिराग लेकर हांथों में लेकर

न विचिलित करो मुरझाने को

आ जाओ तन मन भिगाने को

रस्ता तुम्हारा तकते हैं सब

धरती का तन बच्चों का अन

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...