सिलसिले लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सिलसिले लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 29 मार्च 2009

ऐसे सिलसिले

मुहब्बत भरे प्यार के सिलसिले

खुशियाँ बांटो दिल मिले न मिले

तन्हां है वो जो खुद को तन्हां कहे

हम तो पत्थरों के भी मिले हैं गले

रोते बिलखते बच्चों की सोचो

दो पैसे पर उनके दिल हैं खिले

नफरतें बाँट लो सब को लगा के गले

ऐ "सैफ़" ऐसा मौका मिले न मिले

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...