प्यार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्यार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 16 मई 2009

मुझे तुम प्यार करते हो

मुझे तुम प्यार करते हो

तो ये हक़ भी रखते हो

मेरे ख्वाबों में तुम आओ

मेरी तन्हाईयाँ मिटा जाओ

बहारें तुम से रोशन हैं

नज़ारे तुम से रोशन हैं

तुम ही से है कायनात मेरी

तुम्ही से हर बात मेरी

तुम ही तुम हो ज़माने में

तुम्ही हो दिल लगाने में

कोई न तुम से है दूजा

तुम्हारी करता मैं पूजा

चले आओ ज़रा छुपकर

ज़माने से ज़रा बचकर

मैं अब भी तुम्हारा हूँ

सितम से अब मैं हारा हूँ

कमी क्या है मुझ में ऐसी

क्यूँ तेरे चेहरे पर है उदासी

बात है बस इतनी छोटी

मुझे तुम प्यार करते हो !

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

ऐसा भी क्या ?

तुम्हे भी मेरी हद पता है ज़ालिम
चुन चुन के वार करती हो

जो यूँ बेकरार हैं हम तुम भी हो
या आँखों आँखों में प्यार करती हो

मुस्कुराती हो कभी शर्माती हो
ये सितम क्यूँ मेरे यार करती हो

रात का ख़ुमार रहता है पुरे दिन
तुम क्यूँ ऐसा श्रृंगार करती हो

बस एक नज़र और दीवाना किया
"सैफ़" को क्यूँ इतना बेकरार करती हो

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...