शनिवार, 1 अगस्त 2009

तुम्हे कुछ याद तो होगा ?

तुम्हे कुछ याद तो होगा ?

शायद......

ये सवाल है या जवाब ?

हो सकता है .....

क्या ?

ये मैं नहीं जानता.....

मैं समझा नहीं ?

आप सवाल बहुत करते हैं.......

मैं या आप ?

पता नहीं....

तो क्या पता है ?

ये भी पता नहीं.....

वो पल जो हमारे थे ?

मुझे कुछ याद नहीं .....

छोडो जाने दो !

खुदा हाफिज़

फिर एक पल

चल देते,

अकेले होते अगर

ज़िन्दगी तेरी,

आर पकड़

रह गये, लोग रह गये

मोड़ पर,

जो गये थे बिछड़

गुनेहगार हूँ मैं

ज़माने तेरा

आज़माले मुझे तू

फिर एक पल

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...