न शहर मेरा न ही रास्ते
हम चलें है किसके वास्ते
यहाँ कोई अपना हो हमसफर
कौन जी रहा है इस आस पर
कभी हाथ थामो तेरा हूँ मैं
कोई आवाज़ दे कहाँ हूँ मैं
इक ग़ज़ल कहूँ मैं आप से
दिल में रखना सम्हाल के
मैं ख्वाबों में खो गया "सैफ़"
विरान शहर का हो गया "सैफ़"