नदी की धार पर जीवन
लगे बेकार सा जीवन
न कोई साथी न संगत
चले बस आर पे जीवन
अर्थ जीवन का है गेहरा
बहे किस पार ये जीवन
समा कर खुद को खुद में
अकेला क्यूँ चले जीवन
"सैफ़" ये कैसी है मुश्किल ?
चले बिना अर्थ के जीवन
कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...