सोमवार, 19 जनवरी 2009

.........मंथन.........

बहुत दिनों तक सोचा मैंने
अपनी अभिलाषाओं को अपने ही अन्दर
भूखे जानवर सा नोचा मैंने
न जाने क्यों थक गया था मैं
इस जीवन की कशमकश से
निराशा सी हो गयी थी मुझे अपने अंतर्मन से
बहक गया था मैं जिंदगी के सफर से
आज लोटना चाहता हूँ
वापस उस मंजिल की तरफ़
जिसके रास्ते मैं आग का दरिया है
अकेले ही चलना चाहता हूँ
अपने अग्निपथ पर
कर लूँगा पार एक दिन
हर आग के दरिया को
अपने लोटे आत्मबल से

1 टिप्पणी:

Anita B... ने कहा…

Good, this is nice one!!
Anita!!

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