गुरुवार, 22 जनवरी 2009

...............नज़्म................

रौशनी मैं ढालो, राह मिल जायेगी

तिरगी बाँट लो, राह मिल जायेगी

मंजिलों तक कहीं, रुक के लेना न दम

बस चलो बस चलो, राह मिल जायेगी

ग़रजो तन्हां चले, तो भटकने का डर

काफिलों से मिलो, राह मिल जायेगी

गुल तो महदूद होते हैं शाखों तलक

खुशबुओं मैं ढालो, राह मिल जायेगी

किस लिए हैं भला इतनी बेताबियाँ

सब्र से काम लो, राह मिल जायेगी

उस्ताद श्री वीरेंदर ''कवंर'' जी के आशीर्वाद से

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