शनिवार, 4 अप्रैल 2009

शहर

न शहर मेरा न ही रास्ते
हम चलें है किसके वास्ते
यहाँ कोई अपना हो हमसफर
कौन जी रहा है इस आस पर
कभी हाथ थामो तेरा हूँ मैं
कोई आवाज़ दे कहाँ हूँ मैं
इक ग़ज़ल कहूँ मैं आप से
दिल में रखना सम्हाल के
मैं ख्वाबों में खो गया "सैफ़"
विरान शहर का हो गया "सैफ़"

1 टिप्पणी:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bhai achhi pustaken aur achhi rachnaon ko padho bhi, aur nikhar aayega.

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...