मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अकसर....

सपने दिखता रहा अकसर वो
रातों को जगाता रहा अकसर वो
दूर से ही देखता रहा मैं उसको
पास अपने बुलाता रहा अकसर वो
धड़कने दे गया जिंदगी लेकर
तन्हाइयों में गुनगुनाता रहा अकसर वो
कुछ तो बदलेगी दुनिया अपनी
यही बात बताता रहा अकसर वो
ऐ"सैफ़" कोई ग़म हो या ख़ुशी हो उसको
बस मुस्कुराता रहा अकसर वो

2 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

sunder rachna.

मनुदीप यदुवंशी ने कहा…

वाह! मेरे दोस्त तुमने क्लेजा निकाल के रख दिया है यार. तुम बहुत उम्दा शायरी करने लगे हो सरफराज़ भाई. बहुत बढिया.

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...