गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

.........प्राथना...........

साज़ है आवाज़ है तू
तू अँधेरा तू किरण
तू prbhat की वो दिशा है
जिस पे चलता है गगन
सअब का तू है सब है तेरे
सब से achcha तेरा चलन
न ही बनता न बिगड़ता
सब की धुन मैं तू मगन
सुबह सवेरे सबसे पहले
करता "सैफ़" तुझे नमन

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...