शनिवार, 25 जुलाई 2020

मुश्किल है

एक कदम भी और चलता तो थक जाता
मंज़िल पर था  यहां से किधर जाता

यहां सब की सदा आ रही थी बराबर
यहां से उतरता तो तन्हाई से मर जाता

न तरक्क़ी मिली न कामयाब ही हुए 
इस मोड़ से लेकर क्या अपने घर जाता

इतना असां नही किसी का ग़ज़ल कहना
"सैफ़" के बस का होता तो वो कर जाता

कुछ नया सा ।

कुछ नया सा है तजरुबा मेरा दूर का सही तू आशना मेरा । हाल ऐ दिल पूछते हो मेरा  दिन तुम्हारे तो अंधेरा मेरा । कुछ रोशनी कर दो यहां वहां कई बार ...