सोमवार, 2 मार्च 2009

''लम्स''

उसका कुछ कतरा और तेरे होंठों का लम्स
जब मुझे रह रह कर याद आता है
जिस तरह फूलों को छुआ हो मेरे होंठो ने
एक तीखी सी लहर मेरे जेहन में
गूंजती है रह रह के पल दो पल में
क्या हुआ मुझे जो कदम लड़खडाने लगे
जबान चुप मगर होंठ बडबडाने लगे
अब सोचता हूँ घर जाऊँ केसे
आंखों के उठते धुँए को छुपाऊं केसे
अब मेरे होंठों की रंगत बदने लगी
वो जो लग के मेरे लब से जेहन मैं चढ़ने लगी
मैं चाहकर भी उसे हटा न सका
और वो मुझ मैं समाती गयी समाती गयी

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